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Tuesday, 22 November 2011

मैं तुमको देख के जीता हूँ मैं हर पल तुम पे मरता हूँ

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मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ तुम कैसे मुहब्बत करती हो?

तुम जब भी सामने आती हो बस तुमको सुनना चाहता हूँ,
ऐ काश कभी तुम ये कह दो मैं तुमसे मुहब्बत करती हूँ !
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो तुम मुझको बेहद चाहती हो
लेकिन जाने क्यूँ तुम चुप हो ये सोच के दिल घबराता है
ऐसा तो नहीं है ना जाना? सब मेरी नज़र का धोखा है
मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ मैं तुमसे कहना चाहता हूँ
लेकिन कुछ कह सकता भी नहीं माना कि मुहब्बत है फिर भी
लब अपने खुल भी नहीं सकते

मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ तुम कैसे मुहब्बत करती हो

ख्वाबों में बहुत कुछ बोलती हो पर सामने चुप ही रहती हो
ये सोच के दिल घबराता है तुमको खोने से डरता हूँ
मैं तुमसे ये कैसे पूछू तुम कैसे मुहब्बत करती हो?

मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ तुम कैसे मुहब्बत करती हो

मुझे ठण्ड रास नहीं आती मुझे बारिश से भी नफरत थी
पर जिस दिन से मालूम हुआ ये मौसम तुमको भाता है
अब जब भी सावन आता है बारिश में भीगता रहता हूँ
बूंदों में तुमको ढूँढता हूँ कतरों से तुमको पूछता हूँ

मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ, तुम कैसे मुहब्बत करती हो

जब हाथ दुआ को उठते हैं अल्फाज़ कहीं खो जाते हैं
बस ध्यान तुम्हारा होता है और आंसू गिरते रहते हैं
हर ख्वाब तुम्हारा पूरा हो सो रब की मिन्नत करता हूँ

तुम कैसे मुहब्बत करती हो, मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ !


मैं जिंदा एक हकीकत हूँ मैं ज़ज्बा-ए-इश्क की शिद्दत हूँ
मैं तुमको देख के जीता हूँ मैं हर पल तुम पे मरता हूँ
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 मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ तुम कैसे मुहब्बत करती हो ?.

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